Wednesday, 11 April 2018

वसीयत : विजया

छोटे छोटे एहसास
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वसीयत....(😂)
++++
करती हूं
वसीयत
तेरे संग
मरण के वरण की,
अपील है
तेरे चाहने वालों से
करे तो सही
दस्तखत
दस्तावेज़-ए-इश्क़ पर....

(कल जब सुना कि सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु और मौत की वसीयत की इजाज़त दे दी है, सोच आया कि साथ जीने और मरने के अहद को अमली जामा पहना दिया जाय 😜. इज़हारे एहसास है इश्क़ के, तफसील में क़ानूनदां लोग जाएं 😊😊😊)

सिरहन छुअन की : विजया


सिरहन छुअन की.....
++++++
खिलखिलाहट
झील की कुछ
जता रही है
शोख मेरी कुछ
खता रही है...

ओढ़ कर चादर
मदमस्त लहरों की
दास्तानें चन्द पुरानी
बता रही है....

छेड़ कर राग
जाने पहचाने
ज़ालिम
मेरे दिल को
सता रही है....

रोशनी आँखों की
कर रही है चुगली
सिरहन छुअन की
अलबत्ता रही है.....

झुक जाती हूँ मैं
सज़दे में तेरे,
नमाजे इश्क़ यूँ
अता रही है....


गुल मोहब्बत के,,,,,,,

छोटे छोटे एहसास
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खिलते हैं
गुल मोहब्बत के
देने को अंजाम
ज़िंदगी की
आम-ओ-अहम
बातों को,
इज़हार बहुतेरे
होते हैं हर लम्हे
कहे अनकहे
बिन बोले
बिन छुए,,,,,,

कुछ भी कह देते हैं लोग : विजया



कुछ भी कह देते हैं लोग....
+++++
कहने को
कुछ भी
कह देते हैं लोग
बाज़ वक़्त
अपनी ही औक़ात
बता देते हैं लोग.....

फ़िल्मी डायलोग
बड़ी कुत्ती चीज़ हूँ
कहकर
ख़ुद को बड़ा माहिर
जता देते हैं लोग....

कुछ भी कहिए
मेरी तो कमज़ोरी है ये
आड़ में ना जाने
क्या क्या
दबा देते हैं लोग...

इंसान हूँ भगवान नहीं
कहकर
ठोंक देते है ताल
गुनाहों की फ़ेहरिस्त
लम्बी सी
छुपा लेते हैं लोग....

लेने का ना छोड़ते
मौक़ा कोई
देने के नाम पर
साफ़
मुकर जाते हैं लोग...

देकर हवा फ़ितरत को
मोहब्बत की
चन्द लमहों को
जुड़ाव गहरा
दिखा देते हैं लोग...


मुँह ना मोड़,,,,,,

छोटे छोटे एहसास
===========

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जज़्बा ए जुस्तज़ू से
मुँह ना मोड़
मंज़िले मक़सूद को भी
तेरा इंतज़ार है,
चलता रह
लिए जोशो खरोश ओ हौसला
वो भी तो तुम से
मिलने को बेक़रार है,,,,,

I Love You : Vijaya


'I Love You'
+++++++
नज़रों से
छुअन से
परवाह से
ख़ामोशी से
इज़हार कर,
दुःख में
सुख में
साझेदारी कर,
छोटे से छोटे
बड़े से बड़े काम में
हाथ बँटा कर,
हर लड़खड़ाहट में
संभाल कर,
उदासी में
हँसा कर,
आँसू बहाने को
कंधा पेश कर,
हर ख़ुशी में
ख़ुद को शुमार कर,
फूँककर नयी ताक़त
बालपन की शरारत कर,
हाथ में हाथ दिए
झील किनारे
संग चल कर,
अपनों और परायों के दर्द को
साथ साथ
महसूस कर,
बिन बोले
सब कुछ समझ कर,
दिलाता है जब कोई
एहसास दिली मुहब्बत का
बिन कहे सुनायी दे जाता है
'I love you'....
नकार देती हूँ ज़रूरत
इस जुमले की
जो बाज़ वक़्त बन जाता है
महज एक रस्म अदायी,
खोखला सा हो जाता है
सब कुछ
जब ये अल्फ़ाज़
रह जाते हैं
होकर बेमानी,
ख़ुश होती हूँ मैं
सुन कर
अपने सारे वजूद से
हर शै में समाए
अनकहे
इन तीन लफ़्ज़ों को.....
तुझे साथ पा कर.