Friday, 26 February 2016

तवज्जो,,,,,,,,,

तवज्जो,,,,,,,

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जानना समझना है
गर किसी की
तबिअत को                       ( प्रकृति /nature)
उठा लो जोखिम
खेल
तवज्जो                              (attentiion) (विशेष ध्यान)
और
तगाफ़ुल का                      (neglect) (उपेक्षा)
खेलने का ,
देख लो
रुख बदल बदल कर
उन सब को
जो करते थे दावे
तवानाई                              (strength/power) (शक्ति)
तवालत                              (prolongation) (दीर्घता)
तवाज़ुन                              (balance) (संतुलन)
तवातुर के,                          (eternity) (निरंतरता)
खुलने दो
तह-ब-तह                           (layers)(परतें)
तसन्नो के                            (artificiality) (कृत्रिमपन)
तवह्हुमात,                         (illusions) (भ्रम)
तहनशीं में                          (sediment) (तलछटी)
पाओगे
जूनून ए तसल्लुत,                 (domination) (आधिपत्य
लिए हुए
सोच तशकीक के                 (doubt) (संदेह)
जो हो चुके हैं
तहलील                              (dissolve) (विलयन)
तहोबाला होकर                   (disarranged)(अस्तव्यस्त)
उनके
तलव्वुन मिज़ाज़ में,              (instable)(अस्थिर)
बेज़रूरत साबित होंगी
सारी तरकीबें                       (strategies) (रण नीतियां)
तरदीद                                (refutation) (खंडन)
तरतीब                                (arrangement (क्रमबद्ध)
तलाफी और                         (compensation)(क्षतिपूर्ति)
तवक्को की,                            (expectation)(अपेक्षा)
छोड़ कर
तफ्तीश                                 (search) (जांच पड़ताल)
लौट  आना
जानिब खुद के
होगा हासिल
तरब                                    (joy)(हर्ष)
ताज़ा तरश्शुह और                (drizzle) (फुहार)
तग़ैयुर के                              (transformation) (परिवर्तन)
तरन्नुम का,,,,,,                          (lyrical sound) (संगीत)

Sunday, 14 February 2016

जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी : विजया और विनोद

जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी
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थांरी रख्या करे देशाणी ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
म्हाने सुख आयो जद थे आया
थे तो सिरदयां में धूप सुहाणी ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
थांरो उणीयारो महाराणी सो
थांने जलम दियो छत्राणी ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
चटक मटक चोखा चोखा
थांरै नखरां री बात नीराली ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
थे मूळको जद जग मूळकज्या
थांरी बात घणी मन भायी ओ राज
जुग जुग् जीयो म्हारी लाडलड़ी.
नख शिख तक थे सज्या रहवो
थांरा शौक जबर रजवाड़ी ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
दिल थांरो काचो कोमळ घणो
ज्यूँ कनक बाई री जाई ओ राज
जुग जुग जीयो म्हारी लाडलड़ी.
(आज हमारी बेटी नीरा का जन्मदिन है ३ नवम्बर, २०१५)
तर्ज़ : घूमर रमबा म्हे जा स्यां ।

जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,

जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,
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ऊष्मा को मैं था तरस गया
जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,,,

मैं तपता एक मरु थल था
झुलसा तन, मन विकल था
रुत बदली, बदला मौसम
आयेे थे बन सुखद फुहार तुम,,,,,,,

रजनी दिवस घटी वो पल
थिरता थोड़ी ,लंबी हलचल
समय के उड़ने का शिकवा
आये थे बन सुखद बयार तुम,,,,,,

बेचैन चाह बनी राहत
पल छिन थी तेरी आहट
बंद दर पर दे दे कर दस्तक
आये थे बन सुर झंकार तुम,,,,,,

शीतकम्पित हृदय हो रहा
अंतस का सम्बल खो रहा
गिरे परदे छंटे कुहासा यह
हो प्रकट सूरज साकार तुम ..

ऊष्मा को मैं था तरस गया
जब बने शल्क तुषार तुम,,,,,,

शल्क=परत, पपड़ी

Scribblings : Maturity

Scribblings  : Maturity
# # ## # # #
Maturity
The inner integrity
That happens only
When we stop making
Others responsible
For our
sufferings,
Let us realize
Whatever is happening
It is our doing
It is our creation,,,,,,
Maturity is not
Hypocrisy
Crookedness
Manipulation,
It's Innocence
Innocence reclaimed
Becoming the child again
The child who is incorruptible
As he has attained the
Consciousness,
Fully alert he is
Aware of all the
Beauty and splandor of
Existence
Now he lives in present
Firm and fair he is
With all the gentleness
With all the sweetness of nectar
With the glow of confidence
Nothing superficial
No manipulation
Whatever is
That is
'As it is' from inner and outer
With the spontaneity
Here and now,,,,,

पाताल : विजया

पाताल
+ + + + +
जो ना समझे
जग की चाल,
समझो
पहुँच गया
पाताल...

मधुर वचन से
मन को घेरे,
उष्ण स्पर्श के
तन पर डेरे,
नाचे मानुष
नौ नौ ताल,
समझो
पहुँच गया
पाताल...

थोथी सब की
बातें सुन के
पाप पुन्य की
चादर बुन के
भूल जाए जो
स्थिति काल,
समझो
पहुँच गया
पाताल...
झूठी बडाई को
पाकर के जो
पुलाव् खयाली
खाकर के जो,
बन जाए
बौड़म वाचाल,
समझो
पहुँच गया
पाताल...
सावधानी हटी
घटी दुर्घटना,
जाना दिल्ली
उतरे पटना,
हो जावे यूँ
हाल बेहाल,
समझो
पहुँच गया
पाताल...

ख्वाब... : विजया

ख्वाब...
+ + + + +

जाग भी जाओ
जाना !
खोये रहोगे
ख़्वाब में
यूँ कब तक,
देखो ना
रह गयी है
तड़फती
दर्द के बिस्तर पर
बेहिसी..

अनकहे को सुन ले.... : विजया

अनकहे को सुन ले....
+ + + + + + +

कैसे कहूँ मेरा हमदम कितना करीब है
हर लम्हे मेरा साया वो ऐसा हबीब है.

हर राह और मोड़ पर वो साथ देनेवला
वो है मेरी ज़िन्दगी में ये मेरा नसीब है.

वो परिंदा है अर्श का मैं फर्श पर टिकी हूँ
अल्लाह की पनाह में क्या कोई गरीब है.

रूह में वही बसा है मेरा वुज़ूद भी वही है
दिलोजिस्म की यह दूरी कितनी अजीब है.

अनकहे को सुन ले पढ़ ले वोअनलिखे को
बिन कहे भी सब कह दे वो ऐसा अदीब है. 

मानव आत्ममुग्ध : विजया

मानव आत्ममुग्ध 
+ + + + +
अल्पतम
अम्ल
शांत हो या विक्षुब्ध
छिन्न विच्छिन्न हो
उष्ण दुग्ध
स्वल्प युक्ति
चिंतन अवरुद्ध
तत्गति प्राप्य
मानव
आत्ममुग्ध
बाह्य तप्त
अंतः दग्ध
निमिष जीवी
मानव
आत्ममुग्ध....

कुछ अस्फुट सा.. : विजया

कुछ अस्फुट सा..
+ + + + + +

(१)
दीपशिखा
प्रज्वल्लित रहती
बाती लेकिन
जल जाती है,
भक्ति उत्सव में
ना जाने
कितनीबातें
टल जाती है...
(२)
हर रजनी को
दीप जला
श्रेय लिया
सब करने का,
सोचों कितनों को
इस क्रम में
दुर्भाग्य मिला है
मरने का..
(३)
एक अंगी
चिंतन को लेकर
पाँव बढ़ाये
जाते हो,
जीवन के इस
सहज सफ़र में
अकेला स्वयं को
पाते हो...
(४)
भिन्न मिले यदि
कहीं तुम्हे तो
फरियाते
गरियाते हो,
अपने से
ऊँचा पाकर तुम
शावक सम
मिमियाते हो..
(५)
दंभ जिसे हो
ज्ञान का अपना
सब से बड़ा
अज्ञानी है,
गूगल समय में
सुन लो स्पष्ट
स्मृतियाँ सब
बेमानी है...
(६)
शब्द जाल
बुन बुन कर तुम
उलझाने को ही
उत्सुक हो,
रूप बदल
स्वरुप बदल
लाभ क्षणिक के
इच्छुक हो..
(७)
अर्थ पहुँच ना
पाए जब तक
शब्द
प्रलाप कहलाते हैं,
स्वसंवाद
घटित हो भ्रमवश
निज को ही
बहलाते हैं..
(८)
जीवन की
इस आप धापी में
किसको फुर्सत है
रोने की,
प्रतिस्पर्द्धा के
इस युग में
किसकी कुव्वत
कुछ खोने की..

कुछ दोहे : विजया

कुछ दोहे
+ + + + + + + + +

-१-
अक्षर मिल कर शब्द बने अर्थ घटित अनेक !
अहम् जो आया मध्य में दूषित भया प्रत्येक !!
-२-
आँख फोड़ अँधा हुआ उसे बचाए कौन !
बिना ज्ञान ज्ञानी भया उसे बुझाये कौन !!
-३-
अंतिम रेखा खींच कर जड़ कर लिए विचार !
चिंतन धारा रुक गयी निकले कैसे सार !!
-४-
बनूँ नियंता औरन का मैं ना करूँ बर्दाश्त !
पीछे पीछे सब चलो मैं न किसी के साथ !!
-५-
परिभाषा घड ली तुम ने करने खुद को सिद्ध
मार झपट्टा छीन रहे ज्यों मरघट के गिद्ध !!
-६-
सखियाँ यूँ चर्चा करे कान्हा चतुर सुजान !
सभी संग नर्तन करे धर हिय सबके प्रान !!

कांगसियो मोलावे.. : विजया

कांगसियो मोलावे..
('भंवर' शब्द का प्रयोग हुआ है-राजस्थानी में यह संबोधन पति/प्रेमी/लाडले/राजपूत युवा आदि के लिए होता है.वही आशय इस कविता में लिया है ...whirlpool से नहीं)
* * * * * * * * 

म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे
ढलती उमर में बादीलो
सज बाजारां जावे ...
(मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है. ढलती हुई उम्र में भी सज धज के बाहर निकलता है.
जग री रीत निभावतां
गयी जवानी बीत
जाने कठे चली गयी
बा बाळपण री प्रीत.
(संसार की रीत नीत निबाहते यौवन के दिन बीत गए, ना जाने बचपन की प्रीत कहाँ गुम हो गयी.)
फेसबुक ने खोलखोल
सुंदरियां निरखावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(फेसबुक को खोल खोल कर सुंदरियों को निरखता है, मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
जद स्यूं आयो स्मार्टफोन
बातां रो होग्यो टोटो
चाय पीन्वता जीमता
चिपक्योडो रहवे ओ खोटो.
(जब से स्मार्ट फोन आया है आपसी बात दुर्लभ हो गयी है, चाय पीते खाते हुए यह मुआ फोन जैसे चिपका हुआ रहता है.)
गुड मोर्निंग गुड नाईट
मेसेज
जोरां गुड़कावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(गुड मोर्निंग गुड नाईट के मेसेज, whatsapp या फेसबुक पर,जोरों से देता रहता है, मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
बुण भावां ने बो सबदां मां
कबिता फूटरी कह देवे
हिन्वडे ने ज्यूँ छु ज्यावे
वो बात्यां इसड़ी रख देवे.
(भावों को शब्दों में बुन कर बहुत मनोरम कवितायें कहता है, ह्रदय को स्पर्श के दे ऐसी ऐसी बातें उनमें रख देता है.)
छोरी छापरी बुढलड़ल्यां
हरखे और बिं पर लुळ ज्यावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(चाहे जवान लडकियां हो या बुढियायें पढ़ पढ़ कर सुन सुन कर हर्षित होती है और उसकी तरफ झुक जाती है. मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
भोलो शम्भू प्रेम भरयो
जग-बुद्धि लगाया ताला
जोर ठ्ग्यो निचोड़ लियो
अपणा काईं पर हाला.
(इस भोले शम्भू के ह्रदय में प्रेम भरा रहता है..लेकिन दुनियावी बुद्धि पर इसके ताला पड़ा रहता है, इसको अपनों और परायों सभी ने ठगा और निचौड़ा है.)
चिड्क्ल्यां चुग फुर्र हुगी
अब बैठ्यो पछतावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(जब चिड़ियाँ खेत चुग गयी तो यह बैठ कर पछताता है.मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)
कलम अड़े हर भूख लगे
जे कहणा होवे भेद
काज सरयां दुःख बिसरया
बेरी हुग्या बेद.
(जब इसकी कलम रुक जाती है किसी शब्द या भाव को सटीक लिखने में, या इसे जब भूख लगती है, या कोई खास बात शेयर करनी होती है तो मुझे पुकारता है...लेकिन उसके बाद राजस्थानी की यह कहावत कि काम पूरा हुआ और पीड़ा मिट गयी तो वैद्यराज हमारे दुश्मन smile emoticon )
जो भी होज्या साजनडो
रग रग में बस ज्यावे
म्हारे छेल भंवर रा
केश झीणा
कांगसियो मोलावे....
(जो भी हो मेरा यह साजन मेरी रग रग में व्याप्त है.मेरे टशनवाले प्रीतम के बाल कम है लेकिन कंघे खरीदता है.)

मर्म समझ कर मैं चली.. : विजया


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मर्म समझ कर मैं चली भ्रम हो गयो संग
स्वान भी पीछे हो लिए भंगित अंग उपंग !! १ !!

आखर की माया रची बहुत बनाए शब्द
चोट पड़ी जब जोर से हो गए हैं निस्तब्ध !!२!!

ज्ञान जो उपजे ह्रदय में बाकी सब बकवास
धूम-बदरिया से करे ज्यों बारिश की आस !!३!!

रग रग मेरी दुखती छुअन जगाये पीर
मीठे मीठे बेन भी देत करेजवा चीर !!४!!

भेख बनाया मोकरा ज्यों नाटक में भांड
टेढो मेड़ो डोल रह्यो ज्यूँ गलियन को सांड !!५!!

दर्द मेरो ही दर्द है पर की पीर पाखण्ड
मेरो सब कुछ सांच है औरन करे अफंड !! ६!!

कारज कारन जोड़ तो इसी जन्म की बात
जैसा कर वैसा ही भर चले साथ ही साथ !!७!!

हम हम हैं हम तुम नहीं... : विजया


+ + + + + 

आँख मेरी पुरनम नहीं
मैं खुश हूँ कोई गम नहीं.

मिलनी है मंजिल मुझको
मेरी राह में पेचोखम नहीं.

सुकून मेरा छीन ले मुझसे
किसी शै में ऐसा दम नहीं.

है पाकीज़गी मौज़ू दिल का
आबे गंगा या जमज़म नही.

रहता है खुदा दिलों में ही
घर उसका दैरो हरम नहीं.

घबराया क्यूँ आईने से तू
ज़िन्दगानी कोई रम नहीं.

कर ना बर्बाद रोशनाई तू
यहाँ जाहिलों का ज़म नहीं.

लिखने को लिख दे कुछ भी
दिल ना छुए वो कलम नहीं.

गवारा नहीं बनावट हमको
हम हम हैं हम तुम नहीं.

अगला शब्द : जाहिल
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मायने :
पुरनम=आंसू भरी, पेचोखम=मोड़ और घुमाव,मौजू=विषय,
आब=पानी, जमजम=मक्का का पवित्र कुंआ,
दैरो हरम=मंदिर मस्जिद, रम=डर के मारे भागना,
रोशनाई=स्याही, ज़म=मीटिंग/गेदरिंग जैसे अपना यह ग्रुप
गवारा=रुचकर