Sunday, 3 August 2014

ख़त मोहब्बत के (Nazmaa)

~.~ : ख़त मोहब्बत के : ~.~

(नजमा और अर्पिता की साँझा पेशकश)

This urdu nazm is a joint effort of mine and Arpita. Ofcourse  Ali has contributed his best as a critic. I am grateful to my Urdu Utaadji for his help and guidance .

# # #
कितनी 
शिद्दत से 
लिखे थे 
वो ख़त मोहब्बत के 
तुम को 
हमने,
ना जाने क्यूँ 
समझा था 
उनको 
महज़ 
अर्जे इसलाह
तुम ने...

लौटा दिए थे 
तुम ने
वो बचकाने 
अशआर हमारे,
टांक कर 
उनमें 
अल्फाज़-ओ-ज़ज्बात के
सितारे...

लगा था 
हम को 
डाल देती है जब
जान 
छुअन तेरी 
उन मुर्दा 
अलफ़ाज़ में,
फूंक सकते हो तुम 
तरन्नुम 
मेरे 
टूटे साज़
और 
रुंधी आवाज़ में...

खेलते रहे
मेरे चाँद 
तुम आँखमिचौनी
हम से, 
कदर ना जानी
और 
ना पा सके हम 
दिलासे चन्द
तुम से...

तड़फ रहे थे 
तरस रहे थे 
हम 
करने हासिल 
बेपनाह प्यार
तुम्हारा,
बता ऐ पत्थर दिल !
नहीं क्यूँ थी 
तुम्हारे काबिल 
यह अधुरा बुत
बेसहारा....

शहजादे 
ख्वाबों खयालों के 
देते हैं कसम 
हमारी,
बतला देना 
रुखसते ज़हाँ से 
पहिले 
खता क्या थी 
हमारी...

अलविदा !
अलविदा !
ऐ मालिक मेरे
सपनों के,
मुबारक हो 
तुझे 
हर लम्हे 
ये कहकहे 
अपनों के...

No comments:

Post a Comment