वाजिब तो नहीं...
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चलना है
वक्त को तो
आगे ही हरदम,
सुईयां घडी की
पीछे घुमाना
वाजिब तो नहीं...
साँझ ढली
थक कर लौटें हैं
पंछी घर को,
शाख शज़र की
ऐसे हिलाना
वाजिब तो नहीं...
साथ मेरा
पैबंद सा है
तेरे लिए ,
ख्वाबों में तुझको
ले आना
वाजिब तो नहीं...
मुस्कुराना
हर लम्हे
आदत है मेरी,
खुश हूँ मैं
यह समझाना
वाजिब तो नहीं..
बेपरवाह है तू
मेरे होने
ना होने से,
तेरे तस्वीर
हर शै में बनाना
वाजिब तो नहीं...
लगे है
तेरे सीने से
अज़ीज़-ओ-अपने तेरे,
पैगामे इश्क
मेरा भिजवाना
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