अवचेतन मन की अनुभूति
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मेरी रातों में,
एक कोमल सी दस्तक,
जगा देती है मुझ को.
और ढूंढता हूँ,
अपने दिल की धड़कन,
जो वहाँ नहीं है,
बस खोजता ही,
रह जाता हूँ.
अचानक
खामोशी के बीच,
वही मासूम सी आवाज़,
धीमे से कहती है:
"जो मेरे पास है,
उसे कहाँ देख रहे हो.
चले आओ सांसो के करीब,
एहसासों का यह सफ़र,
बहुत हो चुका,
मेरी धड़कनों में समाया,
तुम्हारे दिल का साज़,
जन्मा चुका है
एक नयी धुन,
जिसे सुनने,
समझने,
और
गुनगुनाने के लिए,
चाहिए महज साथ,
जो हर रात से परे हो,
हर दिन से कहीं दूर
उस स्पंदन के इर्द-गिर्द,
जहाँ ठहर जाता हो वक़्त."
मैं था जगा हुआ,
फिर वो एक सपना था ?
कोई नहीं था
आस पास,
वो थी क्या मेरे,
अवचेतन मन की,
अनुभूति............???
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