एक संवाद : इंसान और भगवान के बीच
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इंसान :
मेरो तन उजरो
मन है कारो
साँवरिया मोहे
भवसागर से तारो.
तू जो नाहीं
बसत मन मोरे
भाई हमरी गत खोटी
कर्म भये छिछोरे
बस एक ही
तोहरो सहारो
साँवरिया मोहे
भवसागर से तारो
भटकूँ चहुँ दिखी
ठोर ना पाऊं
ओर ना पाऊं
कोई छोर ना पाऊं
किस बिध
होवे निस्तारो
साँवरिया मोहे
भवसागर से तारो.
भगवान :
दुई हाथन
लडूअन होई कैसे
जैसन करम
भरण होई वैसे
क्यूँ नहीं
खुद ने सुधारों
साँवरिया मोहे
भवसागर से तारो
अँखियाँ सुरती
सब दियो तौहे
माथे तेज़
ग़ज़ब है सौहे
निज हिरदे
तनिक बिचारो .
साँवरिया मोहे
भवसागर से तारो
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