दो पंछी एक डाल के.......(दीवानी सीरीज)
उसकी एक 'published' कविता छोटी स़ी मगर बहुत ही पीड़ा-सिक्त स़ी:
# # #
आँखें
अभी भी
टिकी रहती है
दरवाजे पर
शायद
तुम
लौट आओ.
स्मृतियों के
चक्रव्यूह में
फंसी मैं,
तुम्हारे
लौट आने के
झूठे एहसास को
पाले
जी रही हूँ.
________________________________________ ___________________________
और यह है मेरी 'unpublished' रचना, उसकी उप्रयुक्त कविता से प्रेरित:
# # #
प्रतीक्षा
मुझ को भी है
तुम्हारी
किन्तु
तुम छोड़ आने की
अपेक्षा
जो रही हो
बाट मेरी
बैठ कर
किसी और की
चौखट पर.
स्मृतियों से
निकलने के
मार्ग का
मुझे भी नहीं
संज्ञान,
तथापि
मानता नहीं मैं
चक्रव्यूह उसको.
मैं तो यादों के
आकाश में
स्वछन्द
विचरण करता हुआ
हूँ एक पखेरू,
देखता हूँ
हर पल:
कहीं तुम
किसी शाख पर
स्वतंत्र बैठी
मिल जाओ
और
मैं भी
नीचे उतर
हो जाऊँ
सन्निकट तुम्हारे;
और
बन जायें हम
दो पंछी
एक डाल के.
खुले आकाश के
नीचे.
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आँखें
अभी भी
टिकी रहती है
दरवाजे पर
शायद
तुम
लौट आओ.
स्मृतियों के
चक्रव्यूह में
फंसी मैं,
तुम्हारे
लौट आने के
झूठे एहसास को
पाले
जी रही हूँ.
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और यह है मेरी 'unpublished' रचना, उसकी उप्रयुक्त कविता से प्रेरित:
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प्रतीक्षा
मुझ को भी है
तुम्हारी
किन्तु
तुम छोड़ आने की
अपेक्षा
जो रही हो
बाट मेरी
बैठ कर
किसी और की
चौखट पर.
स्मृतियों से
निकलने के
मार्ग का
मुझे भी नहीं
संज्ञान,
तथापि
मानता नहीं मैं
चक्रव्यूह उसको.
मैं तो यादों के
आकाश में
स्वछन्द
विचरण करता हुआ
हूँ एक पखेरू,
देखता हूँ
हर पल:
कहीं तुम
किसी शाख पर
स्वतंत्र बैठी
मिल जाओ
और
मैं भी
नीचे उतर
हो जाऊँ
सन्निकट तुम्हारे;
और
बन जायें हम
दो पंछी
एक डाल के.
खुले आकाश के
नीचे.
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