vinod's feels and words
Sunday, 14 March 2021
गोलाश्म और नदी....
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गोलाश्म और नदी.... ########## विशाल पहाड़ की ढलान पर दौड़े जा रही थी एक सुंदर नदी चम चम चमकती हुई स्फटिक सी स्पष्ट, वैसा ही था ना बेदाग...
हाले दिल : विजया
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हाले दिल... ++++++ क्या जाने कोई भी पूरा हाले दिल नदिया का रखना होता है जारी मुससल यह लम्बा उतार चढ़ाव का बस एक ही तड़फ लिए मिलना है स...
ख़ुद में लौट आएँ...
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ख़ुद में लौट आएँ... ########## ना हो तलब ना ही तमन्ना वह लम्हा फिर से चला आए अब सुनें कुछ दिल की ऐसे के उठें ,चलें और ख़ुद में लौट आएँ......
Monday, 1 March 2021
शउर मजबूरी के,,, : विजया
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शउर मजबूरी के... ++++++++++ उसके जन्मने से बहुत पहले ही बिगाड़ दिया था समाज ने संतुलन अपनी माप जोख की तराजू का और समतलता उस ज़मीन की भ...
प्रवेश हमारा,,,,,
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प्रवेश हमारा,,, ########## मन्सा और क्रियान्वन के बीच का अंतर भर जाता है न जाने कितनी प्रक्रियाओं से : मानसिक भावनात्मक और अज्ञात-अनाम, ...
Friday, 12 February 2021
मैं बेपरवाह....
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मैं बेपरवाह... ###### अल्लाह हू अल्लाह हू अल्लाह हू अल्लाह हूँ अल्लाह हूँ अल्लाह हू... कश्मकश उलझने, उलझने कश्मकश उम्मीद का दीया ही ,देता ...
पात्र...
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पात्र... #### फूलों का नही शूलों का ही था पात्र मैं, स्वीकार हुए मुझे तभी सहर्ष उपहार नुकीले काँटों के, रखी नहीं थी मैं ने अपेक्षा कभी...
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