vinod's feels and words

Wednesday, 6 November 2019

चलती रहती है ज़िंदगी : विजया

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चलती रहती है ज़िंदगी.... +++++++++++++ उकेरा है अनगिनत सूरजों ने पहली रोशनी को हर सुबह मगर खो ही गए वे भी हर रोज़ साँझ के धुँधलकों मे...
Wednesday, 30 October 2019

वह ग़मज़दा लड़की.....

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draft : वह ग़मज़दा लड़की,,,, ########## वह करती रही तैयार मुखौटे खातिर खुद के देख कर वो चेहरे जो मिला करते थे हर रोज़ उसको  : दोस्त...
Wednesday, 16 October 2019

समापन नहीं...

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शब्द सृजन : मृत्यु, अवसाद आदि =================== समापन नहीं,,, ####### •••••••••• यह समापन नहीं मृत्यु भी नहीं प्रत्युत हैं कुछ औ...

हीन भाव : विजया

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शब्द सृजन : कमतरी **************** हीन भाव (अहसासे कमतरी) ++++++++++++++++ सोचती हूँ कभी कभी करूँ क्या मेरे उस हिस्से का जो बार बार...
Tuesday, 1 October 2019

बचपन और बचपना,,,

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फ़र्क़ बस इतना है बचपन और बचकानेपन में, होता है एक अन्तर की सहज गहरायी में मीठा सा एहसास दीखता है दूसरा हिचकोले खाता हुआ तैरता सा ...

रहस्यमयता की धुँध : विजया

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थीम सृजन : साहिल और समंदर ************************* रहस्यमयता की धुँध.... ++++++++++ खो गया है सागर रहस्यमयता की धुँध में नहीं बताता...

मौन में पले स्वप्न,,,

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छोटे छोटे एहसास ========== मौन में पले स्वप्न होते हैं जब साकार लगती है सुखद पुनरावृति उन पलों की जो जीये गये थे बिन बोले !
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Vinod Singhi
An ordinary individual with extra-ordinary way of looking at things.
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