vinod's feels and words

Saturday, 30 June 2018

नदिया....

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नदिया,,,,, #### बहे जा रही है उछलती कूदती गिरती सम्भलती चपल नदिया अपने सागर की ओरi गुजरती हुई चट्टानों,पत्थरों शिलाखंडों, कंकड़ो...

तुम्हारी कविताएँ : विजया

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तुम्हारी कविताएँ.... ++++++++ पढ़कर तुम्हारी कविताएँ खो जाती हूँ मैं ना जाने किन किन ख़यालों में खोजने लगती हूँ ख़ुद को तेरे उन कि...

भावाश्रित

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भावाश्रित..... # # # मैने किया सर्वस्व अर्पित, समझा तू ने भावाश्रित, ना समझा तू बात ह्रदय की, कर दिया सब कुछ विस्मृत... परिभा...

मौसमी योगी : विजया

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आशु रचना 769 ========== (पसली : 678 : उमेदजी) मौसमी योगी... ######## आज का अखबार भरा भरा सा है योग दिवस की सुर्खियों से..... तस्...

मूल सोच : विजया

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मूल सोच.... +++++ माता,पिता,गुरु,मित्र प्रेमी, प्रेमिका और ईश्वर ऐसे किरदार जीवन के जो बस दिए जाते हैं नहीं करते उम्मीद लेने की, ...
Friday, 11 May 2018

होश आया,,,,,,

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होश आया,,, #### सराबों ने हमको कुछ ऐसा भरमाया सहरा में भटके बहुत कुछ गँवाया, जो रहा ही नहीं उसका हो ग़म क्यों समझाया जो ख़ुद को तभ...
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मरीचिका : विजया

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मरीचिका... ++++++ हो गया जो सागर मरीचिका जैसा ही लगने लगा है जलधि फिर से यूँ तो क्या, हो गयी है पथ्य पीर जो स्वयं ही उपचार इस व्यथा क...
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Vinod Singhi
An ordinary individual with extra-ordinary way of looking at things.
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