vinod's feels and words

Friday, 11 May 2018

होश आया,,,,,,

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होश आया,,, #### सराबों ने हमको कुछ ऐसा भरमाया सहरा में भटके बहुत कुछ गँवाया, जो रहा ही नहीं उसका हो ग़म क्यों समझाया जो ख़ुद को तभ...
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मरीचिका : विजया

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मरीचिका... ++++++ हो गया जो सागर मरीचिका जैसा ही लगने लगा है जलधि फिर से यूँ तो क्या, हो गयी है पथ्य पीर जो स्वयं ही उपचार इस व्यथा क...
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मैत्री प्रेम,,,,,

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मैत्री प्रेम # # # मैत्री प्रेम होते हैं घटित मय होश निभाना होता है सबलता निर्बलता सहित साथी अपनाना होता है,,,, समय समाहित है सब कुछ...

करणीय : विजया

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करणीय... +++++ क्या वांछाएँ अपराध है सज़ा उसकी क्या ज़िंदगी अपराध बोध लिए हुए कैसे जीये हम ज़िंदगी... ए ज़िंदगी सुन ले जरा मुझको त...

सुर ताल : विजया

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सुर ताल.... +++++ प्रेम डगर प्रयाण क्रम में अहंकार भुलाना होता है शब्दों का बेढब शोर मिटा सुर ताल मिलाना होता है... स्व हित देखूँ प...

ताश के महल : विजया

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ताश के महल +++++++ लगते ही ठेस ज़रा सी गिर जाते हैं मकान बिना नींव के, खुले आसमाँ में जीने वाले ! क्यों बस जाया करते हो बार बार ...

चेहरा : विजया

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चेहरा... ++++ किया था शुरू मैंने खुरचना उसके पोते हुए रंगों को, उतर रहा था सब कुछ परत दर परत उफ़्फ़ ! मेरे ईश्वर ! वहाँ कोई चेहर...
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Vinod Singhi
An ordinary individual with extra-ordinary way of looking at things.
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