vinod's feels and words

Friday, 24 July 2015

चुगलखोर : विजया

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चुगलखोर + + + + पुरुष ने ना जाने क्यों तुलना की नारी की खाद्य पदार्थों से, शायद समझा उसे सदा ही भोग की एक वस्तु औ जोड़ डाला उसके स्वाद को नम...

जिम्मा तोहमतों का...: विजया

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जिम्मा तोहमतों का... + + + ले लिया था हमने सर अपने जिम्मा तोहमतों का क्यूंकि लिखा था कुछ और ख़त में और कासिद कहे जा रहा था दूसरा कुछ मजबूर ...

तमाशबीन : विजया

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तमाशबीन + + + + साहिल पर डटे हो बनकर तमाशबीन दूरबीन लिए, जानोगे तुम कैसे हकीकत तूफां की, जुझोगे नहीं गर उस से लेकर मौजों को आगोश में.... ज़ि...
Tuesday, 30 June 2015

छोह और बिछोह : विजया

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छोह और बिछोह + + + + + शब्दों और इंसानों में  कभी कभी महसूस होता है समानता असमानता निर्भरता और पूरकता का रिश्ता प्रथम दृष्टि में, किन्तु ह...

खुदा भी खुदगर्ज़ है... विजया

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खुदा भी खुदगर्ज़ है... + + + + चारागर रुक जा ये एक लाइलाज मर्ज़ है इंसां की क्या कहें खुदा भी खुदगर्ज़ है, रवायतों को निबाहते रहो उसूलों क...

आज के बुद्ध..

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आज के बुद्ध.. # # # जटिलताएं जीवन की  कुछ घटी कुछ अनघटी  घेर लेती है जब ज़ेहन को  या आता है दिल में  करें कुछ ऐसा  जो हो  बिलकुल ही 'एक्...
Friday, 26 June 2015

शब्द्नामा

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शब्द्नामा ######## (हमारे आशु कविता ग्रुप में मुझे "यौन" शब्द पर लिखना था और इस कविता के सृजन के प्रोसेस में मुझे अपने द्वारा ...
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Vinod Singhi
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