Tuesday, 14 December 2021

द्वि तनु एकात्म...


द्वि तनु एकात्म...

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हुआ मम 

सघन निकुंज प्रवेश 

व्यग्र मिलनातुर 

छिपे तिमिर में कृष्ण 

स्वयं वांछातुर

प्रिया को खूब सताने

सत्व को सत्व जाने...


आकुल व्याकुल 

नयन ढूँढते 

निरंतर 

हुआ प्रकट 

श्याम सलौना 

तदनंतर 

मोहे अंग लगाने

सत्व को सत्व जाने...


संकोची मैं

लज्जामय कम्पित 

रक्तिम 

सुकोमल मधुर बेन 

उच्चार रहा है 

प्रीतम 

मोहे नाना विधि  रिझाने

सत्व को सत्व जाने...


खो गयी मैं

प्रियतम से 

अति-आश्वस्त 

सरका था 

दुकूल रेशमी होके 

मदमस्त 

जघन अनावृत सुहाने

सत्व को सत्व जाने...


किसलय शैय्या सुखद 

माधव उर 

उष्ण स्पर्श 

सहज समर्पित 

अलसाई मैं 

सहर्ष 

अधर रस अनुपाने

सत्व को सत्व जाने...


पलकें झुकी झुकी 

थकन मादक 

अनिर्वचन 

लालिम कपोल 

केशव के 

झन झन 

धुन मौन बजाने

सत्व को सत्व जाने...


कुहू कुहू सिसक 

कोकिल सम 

ध्वनित 

केश कुंतल 

वेणी कुसुम 

संदलित 

वक्ष कररुह लिखाने

सत्व को सत्व जाने...


आंदोलित अपरिमित 

घनश्याम 

मदनमय 

स्वेद सुवासित   

देह द्वय

निखिल विश्व सरसाने

सत्व को सत्व जाने...


मंथर ध्वनि नूपुर 

अनायास 

अति झंकृत 

रति सुख चरम 

द्वि तनु एकात्म 

सुसंस्कृत 

वेणी चुम्बन बरसाने

सत्व को सत्व जाने...


लता गात

पुरपेच शिथिल 

चरमोत्कर्षित

मोहना निर्बल 

आनंद उत्सव 

अतिहर्षित

राधा श्याम दोऊं मस्ताने

सत्व को सत्व जाने...


(मेरी यह स्वांत: सुखाय रचना बहुत सी तकनीकी और भाषा सम्बन्धी ख़ामियाँ लिए है, फ़्रैंक सुझावों का स्वागत है. इस सामान्य लीक से हटकर लिखने में मैने प्रेरणा ली है कालिदास, जयदेव और विद्यापति के लेखन से.)

नीले रंग से : विजया

 

(कितने सापेक्ष होते हैं निर्वचन !)


नीले रंग से....

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(१)


कलाकार था वो 

चाहती थी शिद्दत से 

उसकी केनवास होना 

भर देना 

उसके लिए 

मेरे दिल और दीमाग को

उल्लास के 

पीले, केशरिया, हरे रंगों से 

भर दिया था 

मुझे उसने तो 

कान्हा के 

नील रंग से....


(भारत में नीले रंग को अमरत्व, स्थिरता, सार्वभौमिक सत्य से जोड़ कर देखते हैं.)


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(२)


कलाकार था वो 

चाहती थी शिद्दत से 

उसकी केनवास होना 

भर देना 

उसके लिए 

मेरे दिल और दीमाग को

उल्लास के 

पीले, नारंगी, हरे रंगों से 

मगर भर दिया था 

मुझे उसने तो 

अवसाद के 

नील रंग से....


(नीले रंग को इंगलेंड में उदास भावों से, जर्मनी में अवसाद, चीन में भूत प्रेत और मौत, तुर्की में शोक से जोड़ कर देखते हैं.)

डिप्रेसन....

 पैंटिंग्स : सहज सृजन 

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डिप्रेसन....

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मोड़ लिया है 

रुख़ अपना तूफ़ान ने 

गुजर गया है छूकर 

कमजोर पड़कर,

कटार की चमकती धार सी

बह रही है तेज हवाएँ अभी भी,

बारिश की भयंकर बौछार 

फिर अचानक मंद हो जाना,

लगातार टिप टिप की आवाज़ 

ज्यों अज़ाखाने  में 

बकरे के कटे सिर से टपकता 

लाल लाल खून,

अजीब सी हलचल 

अंदर बाहर लड़खड़ाहट 

उदासीनता में डूबा आलम 

ऊहापोह हताशा

उलझे उलझे सोच,

सूरज चाँद  गिरे हैं धड़ाम से 

लुढ़के और फिसल गए हैं 

गहरी खाई में,

कलम कर लिए हैं फूलों ने 

सिर अपने अपने,

नोचें हैं काली बिल्ली ने 

पंख कबूतर के 

लटक गयी है तड़फते तड़फते 

गर्दन उसकी,

डरावनी म्याऊँ म्याऊँ चीखती कातिल 

हो गयी है खुद भी हलाक 

ना जाने क्यों, 

ज़िंदा बची हूँ तो बस मैं,फ़क़त मैं 

और मैं....

नहीं चाहती अब और जीना...


(अज़ाखाना=कसाई खाना)

असली रंग....


बहुत दुखद होता है 

किसी के असली रंगों को 

बिगाड़ते हुए देखना 

उस तस्वीर को 

उन्होंने किसी घड़ी

आंका था जिसे खुद ही 

हमारे ज़ेहन के 

कोरे केनवास पर...