Friday, 12 February 2021

मैं बेपरवाह....


मैं बेपरवाह...

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अल्लाह हू अल्लाह हू अल्लाह हू

अल्लाह हूँ  अल्लाह हूँ अल्लाह हू...


कश्मकश उलझने, उलझने कश्मकश 

उम्मीद का दीया ही ,देता  उजाला बस 

किस किस की करूँ परवाह मैं बेपरवाह

लुत्फ़ रक़्स का मिला तो हुआ हूँ मैकश..


अल्लाह हू अल्लाह हू अल्लाह हू

अल्लाह हूँ अल्लाह हूँ अल्लाह हू...


तू ना सही....तेरा होना तो यहाँ है 

सितारों से ज़रा आगे तेरा मेरा जहाँ है 

चल रहा है मेरे साथ हर पल वो तू है 

तू यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ  जाने कहाँ कहाँ है..


अल्लाह हू अल्लाह हू अल्लाह हू

अल्लाह हूँ अल्लाह हूँ अल्लाह हू...


ना एक हो सकती है दो शम्माएँ,सुन

रोशनी दोनों की हो जाती है एक,सुन 

दुई की बातें कर कर ना थका है रे तू

पुतला हूँ मैं तो क्या,मेरा खुदा मैं, सुन..


अल्लाह हू अल्लाह हू अल्लाह हू

अल्लाह हूँ  अल्लाह हूँ अल्लाह हू...

पात्र...

 पात्र...

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फूलों का नही

शूलों का ही था 

पात्र मैं,

स्वीकार हुए 

मुझे तभी सहर्ष 

उपहार नुकीले 

काँटों के,


रखी नहीं थी मैं ने 

अपेक्षा कभी,

कि कोई मुझे 

गुलाब दे,

नयनों का 

खारा पानी 

हुआ था मंज़ूर मुझ को 

ना थी तलब 

कोई मुझे 

अपने दिल की 

शराब दे...

कहे बिन....: विजया

 

कहे बिन...

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बहुत सहा 

अब सहा न जाता

कहे बिन 

अब रहा न जाता...


पौर पौर में 

दर्द समाया 

मन पर भी 

पीड़ा का साया 

नदिया मैली 

अब बहा न जाता

कहे बिन 

अब रहा न जाता...


जोड़े शाश्वत 

दिलासा झूठी 

वादे सारे 

सब क़समें झूठी 

जर्जर चादर 

अब तहा न जाता

कहे बिन 

अब रहा न जाता...


आँसूँ कब के 

शुष्क हुए हैं 

लब मेरे भी 

खुश्क हुए हैं 

राख हुई 

अब दहा न जाता 

कहे बिन 

अब रहा न जाता...


देह आत्मा 

सब टूट गए हैं 

वेदन सोते 

फूट गए है 

कच्चा धागा 

अब गहा न जाता 

कहे बिन 

अब रहा न जाता...


---विजया-2021


(साहेब का शुक्रिया...मेरी हर ख़ुशी पर नाम है जिसका😊

किसी और के मनोभाव जी लेने और लिखने में साहेब की महारत का लाभ मिला है मुझे इस रचना के लिए गाइडेन्स के रूप में)