Wednesday, 6 November 2019

चलती रहती है ज़िंदगी : विजया


चलती रहती है ज़िंदगी....
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उकेरा है अनगिनत सूरजों ने
पहली रोशनी को हर सुबह
मगर खो ही गए वे भी हर रोज़
साँझ के धुँधलकों में,
बनते हैं गवाह तारे लाखों
घोर अंधेरे के वजूद के
मगर नहीं होती गुम नज़र कोई भी
नहीं होता ग़ायब कोई नज़ारा भी
ना ही खोती है क़ुदरती धज किसी की
हुआ रहता है हाज़िर हर लम्हा नाज़िर,
फिर भी यह रात है ना
फाँसती है चाँद को
रात के काले अंधेरों में
चलती रहती है मगर यह ज़िंदगी
मुसस्सल तब भी......