Tuesday, 19 August 2014

संगी

संगी
# # # # #
देह और आत्मा
युक्ति और विवेक 
बुद्धि और मेधा
जागृत अवस्था,
ध्यान और मौन
सचेतना,
साक्षी भाव...
परे इन सब से
आ ही जाते हैं
कभी कभी
चिंतन मनन में
भाव
क्षणिक सी
अस्थिरता के ....
स्यात
किसी अँधेरे कोने में
बिना संभाले
बिना खंगाले
अवशेष रहा कुछ
करने लग जाता है
उपद्रव...
चूँकि
हो नहीं पायें हैं हम
वीतराग,
होगा यही
श्रेयस्कर
करलें हम
स्वीकार
स्वभाव के
इस मानवीय
पहलु को
और देखें
जो जैसा है वैसा ......
हाँ देखने
सुस्पष्ट
इस 'होने' को
रहती है तलाश
किसी संगी की
जो बिना अपनाये
निर्णयात्मकता*
देख सके
सब कुछ
सह-दृष्टि से
सम्यक दृष्टि से...
होता है ना
यही क्रम
उस यात्रा का
जो होती है
आरम्भ
बहिरंग से
और
पहुंच जाती है
अन्तरंग में ...
*judgemental होने की प्रवृति ..

Wednesday, 13 August 2014

अज्ञान मुक्ति : धम्मपद से

अज्ञान मुक्ति : धम्मपद से 

# # # # #
मेघ आच्छादित
चंद्रमा
अक्षम
हेतु देने
प्रकाश ..

मेघ मुक्त हो
वही चंद्रमा
जग को
दे पाता
प्रकाश...

अज्ञान
छाया हो
जिस
मानव पर
होगा कैसे
आलोकित
वह..

अज्ञान मुक्त
होकर ही 
जगती को
मानव
दे पाता है
प्रकाश...

(संशय या द्विविधा मनुष्य को अज्ञानता से आवृत कर देते हैं. स्वयं को आलोकित करने और संसार को भी स्पष्टता की राह दिखने के लिए आवश्यक है कि हम इन अज्ञान रूपी मेघों से मुक्त हों. हम गहन अध्ययन, चिंतन एवम मनन द्वारा ज्ञान, सूचनाओं , विचारों  एवम समाधानों को प्रोसेस कर सकते हैं. यह क्रम हमें निरभ्र चन्द्र के समान बना देता है और हम ज्योतिर्मय हो जाते हैं. हमें निरंतर ज्ञान के आदान प्रदान के अवसर तलाशते रहना है..ताकि हम 'हू-ब-हू' देख पाने में समर्थ हो सकें.)

Inspiring Sutra from Dhammpad :

Yocha pubbe pamajitvaa
Pachaa so nappa majjati
Soinam lokam pabhaaseti
Abhaa muttova chandimaa.
             -----Gautam Buddh 

Tuesday, 12 August 2014

हू-ब-हू (यथार्थ) : धम्मपद से

हू-ब-हू (यथार्थ) : धम्मपद से 

# # # # #
पहचान लो  
गलत को
हू-ब-हू..

पहचान लो 
सही को
हू-ब-हू..

जो करताहै 
फैसला 
सही नज़रिए से 
पाता है वही 
सटीक राह
कामयाबी की..

(चाहे वस्तु हो, मानव हो, अन्य प्राणी हो अथवा कोई घटनाक्रम उसके गुण-दोषों को सम्यक दृष्टि से आकलन करते हुए "जैसा है वैसा देख लेना" ही यथार्थ है. 

जब हमारा आकलन वास्तविकता से कम या ज्यादा होता है उसका निर्णय  संशय और समस्या का अभिशाप उत्पन्न कर देता है. 

सम्यक दृष्टि से सही और गलत दोनों की ही यथावत पहचान करते हुए सही और शुद्ध को अपनाकर सफलता और शांति पायी जा सकती है. )

Inspiring sutra from Dhammpad :

Vajjancha vajjato natvaa
Avajjancha avajjato
Samma ditti samadaana
Satta Gachanti suggatim.
                     ------Buddh 

चार सत्य : धम्मपद से

चार सत्य : धम्मपद से 

# # # # 
प्रथम सत्य 
शोक का :
जन्म 
जरा 
रोग 
मृत्यु 
शोक हैं..

द्वितीय सत्य 
शोक के कारण का :
लोभ है 
कारण
शोक का...

तृतीय सत्य 
शोक के निवारण का : 
कामना हेतु है 
दुःख का ,
विलोपन 
कामना का  
बनाता  है 
शोक मुक्त...

चतुर्थ सत्य 
पथ का :
लोभ और शोक से 
मुक्ति पथ है
अष्ट आयामी* मार्ग.

(जरा : बुढ़ापा) * देखें एक अलग रचना इस के लिए. 

अनासक्ति सर्वश्रेष्ठ धर्म : धम्मपद से

अनासक्ति सर्वश्रेष्ठ धर्म : धम्मपद से 

# # # # 
ना होना 
सुखी या दुखी
दैहिक आराम या कष्ट से, 
होना नहीं
अनुरक्त या विरक्त 
पसंद या नापपसंद से.
ना होना भावुक 
सही या गलत से....

सर्वश्रेष्ठ है धर्म : 
होना सब के लिए 
उपयोगी 
प्रेमपूर्ण और 
चिंतनशील 
समान रूप से.. ...

सिद्ध (जागृत) ही सर्वश्रेष्ठ : धम्मपद से

सिद्ध (जागृत) ही सर्वश्रेष्ठ : धम्मपद से 

# # # # 
श्रेष्ठ है व्यक्ति
संग  
दैहिक चक्षुओं के,
देख सकता है वो 
संसार को.

श्रेष्ठतर है व्यक्ति 
संग 
करुणा चक्षुओं के  
देख सकता है वो 
औरों में स्वयं को...

श्रेष्ठतम है व्यक्ति
संग  
ज्ञान चक्षुओं के 
देख सकता है वो
समग्र स्थिति को..

सर्वश्रेष्ठ है व्यक्ति 
संग 
धर्म चक्षुओं के 
देख सकता है वो 
सर्वजन हिताय..

अष्ट आयामी मार्ग : धम्मपद से

अष्ट आयामी मार्ग : धम्मपद से 

# # # #
सही आचरण 
सही करनी 
सही उपार्जन 
तीनों 
अंग शील 
कहलाते  हैं  

शील(आचरण) त्रय
से 
सुनिश्चित होती 
मानव की 
भौतिक शांति .

सही निश्चय 
सही यथार्थ
सही चिन्तन मनन
तीनों 
तहत समाधि  आते हैं.


समाधि (ध्यान) के 
त्रिआयाम से 
होती है घटित 
मानसिक शांति .

सही उदेश्य
सही दृष्टि 
दोनों 
प्रज्ञा की बात बताते हैं.

द्वय कृत्य 
प्रज्ञा (विवेक) के 
करते प्रदत 
वैचारिक शांति . 

मार्ग / पथ : धम्मपद से

मार्ग / पथ : धम्मपद से 
# # # # 
सर्वश्रेष्ठ है
अष्ठ मार्ग 
सब मार्गों में..

सर्वश्रेष्ठ है 
चार सत्य 
सब सत्यों में..

सर्वश्रेष्ठ है 
अनासक्ति 
सब धर्मों में..

जागृत मानव/मानवी 
सर्वश्रेष्ठ
सब मानवों में..


( अष्ठ मार्ग : १.सही कथन २. सही कार्य ३. सही उपार्जन (आजीविका) ४. सही निश्चय ५. सही यथार्थता ६. सही चिंतन ७. सही नजरिया ८. सही मकसद )

(चार सत्य : १. परिस्थिति २. परिस्थिति का कारण ३. उसका उचित निवारण (उपचार) और सुधार ४. विकास का मार्ग )

( अनासक्ति के स्तर पर पहुँचने के लिए बुद्ध का बताया माध्यम मार्ग सहायक होता है . इसका बेसिक है सटीकता को अपनाना--ना तो अधिक ना ही कम, इसे ही उत्तमता कहा जा सकता है. उत्तमता ना तो कसाव में है ना ही दबाव में--उत्तमता है संतुलन और सटीकता में. सटीकता ना तो पूर्ण लगाव में है और ना ही जबरदस्ती किये गए बिलगाव में. सटीकता है समुचित संपर्क.)

( जागृत  मानव या मानवी ना केवल प्रत्यक्ष या प्रकट को देखता है बल्कि वह अनुभूति और विचार को भी समझ सकता है और उसका अवलोकन कर सकता है----इसी को हम समग्र नजरिया कह सकते हैं. बुद्ध की परंपरा में जागृत को सिद्ध भी कहा जाता है.)

Inspiring Sutra from Dhammpad :

Maaggaanam attangiko setto
Sacchhanam chaturo padaa
Virago setta Dhammaanam
Dipaadanam cha chakhumaa 
                    -----------Buddh

किस्सा पुदीना पंडित उर्फ़ साजिश मुल्ला नसरुद्दीन की..

किस्सा पुदीना पंडित उर्फ़ साजिश मुल्ला नसरुद्दीन की..

# # # # # # # # 
हम सभी तो  तरह तरह के मुलम्मे चढ़ाये घूमते हैं और दूसरों को इम्प्रेस करने की होड़ में बेतरह लगे रहते हैं. बाजारीकरण और उदारीकरण ने जहां हरेक पर सम्पन्नता और अभिजात्य का मुलम्मा चढ़ा दिया है, वहीँ एक नये मुलम्मे की भी बहुत धूम है. यह मुलम्मा है ज्ञान, ध्यान, भक्ति, समाज सेवा, मानव सेवा, पर्यावरण की पर्वाह इत्यादि को औढ़ कर थोड़ा अलग दिखने का. शुक्रिया नये नये धर्मगुरुओं, वक्ताओं और  ऍनजीओज  का, जिनके कारण मुलम्माबाज़ों की यह नयी फसल लहलहाने लगी है. खुरचने से इस मुलम्मे की परत उतर जाती है और असलियत झाँकने लगती है. आज के किस्से का फोकस इसी बात पर है.

हमारे गाँव के नंदू पंडित ह़र समय साफ सुथरे और मुस्कुराते रहने वाली शख्सियत को ओढे घूमते थे. श्रद्धा भक्ति, प्रभुकृपा, सहजता-सरलता की बातें ह़रदम करते थे. कहा करते थे भाई हम पर तो संवारिये की इतनी कृपा है कि हमें कभी भी गुस्सा नहीं आता..अरे कृष्ण के भक्त हैं, गीता नहीं पढ़ी हमने तो क्योंकि हम ज्ञान व्यान नहीं जानते लेकिन भक्ति ने हमें गीता का ज्ञान पिला दिया है...हमें ह़र पल कान्हा अपनी बांसुरी की संगीतमय तान  सुना कर कहते हैं--नंदू कभी गुस्सा नहीं. भक्ति की बातें करते करते नन्दू प्रेम की बाते करने लगते थे...आत्मिक प्रेम से शारीरिक प्रेम की  यात्रा अल्प समय में निपटाने में नन्दू माहिर थे. अपनी चिकनी चुपड़ी बातों के कारण नन्दू स्त्रियों में बहुत पोपुलर हो गए थे. तरह तरह के संबोधन मृदुभाषी नन्दू के हथियार थे, बूढ़े को दद्दू, अधेड़ को चचा, बराबर वालों को भाई/बन्धु/दोस्त, नन्हों को मुनुआ, इसी तरह स्त्रियों को मैय्या, माता, दीदी, बहना और जहां वर्तमान अथवा भविष्य में कुछ और उम्मीद हो वहां रिश्ते से नहीं पुकारते...वहां मीठे मीठे नाम देकर बतलाते ..मजाल कि सामनेवाला या सामनेवाली फ्लेट ना हो जाये. 

बड़े लचीले थे हमारे नन्दू पंडित, अवसर देख कर व्यवहार का रंग बदलने में होशियार. पहले विनम्रता और भक्तिभाव से किसी के ह्रदय में जूतों सहित उतर जाते थे लेकिन बाज वक़्त गुस्सा, नाराज़गी, झगडा...और जब जब झाड पड़ती तुरत माफ़ी मांग कर हमारे नन्दू पंडित रो झींक कर मुआमला रफा दफा कर देते थे .बहुत बड़े मेनेज  मासटर थे  हमारे नन्दू पंडित.

मुल्ला नसरुदीन को पंडित की बढती हुई पोपुलरीटी, खास कर महिलाओं में, नहीं बर्दाश्त होती थी. खुराफाती मुल्ला ने सोचा कि नन्दू की शख्सियत पर जो मुलम्मा चढ़ा है उसे अगर खुरच दिया जाय तो बात बन सकती है. और मुल्ला ने अपनी कोंसपेरिसी को अंजाम दे दिया. 

नन्दू पंडित चौपाल पर बैठे अपने चन्दन लिपे ललाट की 'एक्जिबिसन कम सेल' का आयोजन कर रहे थे कि पंडित के पड़ोसी का लाडला 'पप्पू' आ गया, और कहने लगा. "पंडित चचा, पंडित चचा आप से एक चीज चाहिए...पुदीना... मेरी अम्मा ने मंगाया है." पंडित को अचम्भा हुआ और अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ कहने लगा, "बेटा पप्पू, हम से ज्योतिष, पूजापाठ, भजनभाव की बात पूछो...यह पुदीना तो सब्ज़ीवाले के यहाँ मिलेगा." पप्पू गया ही था कि गप्पू आ गया, लगा अनुरोध करने, " पंडित चचा पंडित चचा..आप से एक चीज मंगाई है मेरी माँ ने....पुदीना." जब रीपीट बात देखी तो पंडित की मुस्कान गायब, माथे पर हल्की स़ी त्यौरी...बोला, " क्या हो गया है तुम्हारी माँ और तुझ को..अरे मेरे पास पुदीना नहीं..भागो." 

इतने में मुल्ला के मोहल्ले का 'घसीटा' आ गया, "सलाम नन्दू चचाजान, अम्मी ने भेजा है और कहा है कि आप से पुदीना ले आऊं." पंडित आपे से बहार हो गया था, जोर जोर से बकने लगा, "जा अपने अब्बा से ला पुदीना, नन्दू पंडित के पास नहीं है पुदीना जाकर अपनी अम्मी से कह दैय्यो." 

पंडित अपना झोला और धोती को संभाले वहां से रवाना हो गया.

कुछ दूर ही गया था कि 'नन्हकी' मिल गयी...टूटे दुधिया दांतों वाली 'नन्हकी' ने अपनी तुतलाती जुबान में बोला, " लंदू चा ,लंदू चा.मेली दीदी ने कहा है कि आप से पुदीना ले आऊं, दीजिये ना चा." पंडित नन्हकी को मारने को दौड़ा. अब तो साहब पंडित जहां से भी गुजरता उस से 'पुदीना' माँगा जाता....पंडित ज्योंही 'पुदीना' सुनता आपे से बाहर हो जाता. दो एक  दिन में ना केवल गाँव में बल्कि आसपास के इलाके में नन्दू पंडित 'पुदीना पंडित' के रूप में फेमस हो गया था. बच्चे तो बच्चे अब तो बड़े भी उसे 'पुदीना' 'पुदीना' कह कर चिढाने लगे थे.

मुल्ला ने देखा कि अब मुआमला पक गया है...अब ब्रह्मास्त्र छोड़ने का मौका आ गया है...

हमारे गाँव में एक 'कल्लू' पहलवान होता था...बदन हठा-कठा मगर ऊपर का माला खाली याने जिस्म  के मुआमले में हीरो लेकिन जेहन के व्यू पॉइंट से जीरो. एक दिन कल्लू गाता गुनगुनाता जा रहा था, "हमें तो लूट लिया....हुस्नवालों ने" कि उसे फरीद्वा ने रोक लिया, "सलाम पहलवान चाचा, वो मेरी आपा ने नन्दू पंडित के पास भेजा था मुझे 'पुदीना' लाने मगर पंडित नहीं देता है.

पहलवान की  नज़र फरीद्वा की आपा नसीबन पर बड़ी शिद्दत से थी और पंडित के उसके साथ बढ़ते होब-नोब से खफा था वो. दिमाग का डिब्बा खाली ही था पहलवान का..और ऊपर से प्रोजेक्टेड माशूका की चाहत 'पुदीना'....और उसकी छोटे भाई का उसे अप्प्रोच करना. पहलवान ने कहा, " देखें कैसे नहीं देता पंडत का बच्चा पुदीना, चलो मेरे साथ." कल्लू आस्तीने  समेटते हुए बोला. 

"आप ही ला दीजिये ना भाईजान  (संबोधन में ऐसे चेंजेज चात्कारिक प्रभाव रखते हैं), मैं तो डरता हूँ पंडित से. आपा  से कह दूंगा कि भाईजान डाईरेक्ट ही आपको पुदीना पहूंचा दे जायेंगे."

भाईजान का संबोधन सुनकर पहलवान फूल कर कुप्पा. वह अपनी मस्तानी चाल से जोश के साथ पंडित की जानिब चल दिया , कल्लू मियाँ इतने मोटिवेटेड थे कि यह सोचने कि जेहमत नहीं ली कि पंडित के पास पुदीना कहाँ मिलेगा और नसीबन को पुदीने कि ज़रुरत क्यों कर होगी. 

"ऐ पंडत, पुदीना दो..." और आस्तीन चढ़ा कर अपना तकियाकलाम दाग़ बैठे कल्लू पहलवान, "हौंसला है तो लड़ कर देखो." 

पंडत को ऐसा गुस्सा आया, ऐसा कि अपने पोथी पन्नों से भरा भारी सा झोला पहलवान के मुंह पर दे मारा. और उसके बाद पहलवान ने जो किया उसका तसव्वुर आप कर लीजिये.

.......लूटे पिटे नंदू पंडित को देख, मुल्ला नसरुद्दीन मुस्कुरा रहा था.

गुफ्तगू जो अशआर बन गयी ...


गुफ्तगू जो अशआर  बन गयी 
(हरेक coupltet की पहली और दूसरी लाइन आपसी डायलाग है)

# # # # # 
मेरी तस्वीर में भी तुम नज़र आते हो मुझे,
ज़र्रे-ज़र्रे में यूँ छिप कर के सताते हो मुझे. 

सताता नहीं ,प्यार मैं करता हूँ  तुझको, 
इन दिनों हर तस्वीर में देखा करता हूँ तुझको. 

धड़क जाता है दिल यक ब यक तेरी ऐसी बातों से, 
छुपा लेती हूँ मैं शरमा  के मुख फिर अपने हाथों से.

नशा सा छा  जाता है मुझ पर ए पगली तेरी बातों से, 
थाम लेता हूँ वुजूद तेरा मैं अपने इन हाथों से. 

काश तुझ तक ले जाये मुझको यह सीधी लकीर, 
पास नहीं तुम इस पल मेरे, यह कैसी तकदीर.

बड़े अरमान से लाये थे चद्दर गुलाबी,
मिल बैठे हैं हम दो ,बिगड़े हुए शराबी. 

ओढा के चद्दर गुलाबी ,तू समा  गयी है मुझमें, 
सौगात मुझे ये ज़िंदगी यूँ थमा गयी है तुझमें.

तुझे मालूम है क्या हो तुम मेरी ज़िंदगी में, 
जन्मों से हो शुमार तुम मेरी बन्दगी में.

रों रों से हो के गुज़रे ,रूह में यूँ घुल गए तुम,
नहीं चाह अब कोई भी मुझको जो मिल गए तुम. 

यह ना तेरा किया है और ना मेरा किया है, 
जो भी जिया है हम ने ,उसका ही दिया है. 

एक ही प्याले में सुरा पी कर

एक ही प्याले में सुरा पी कर 

# # #
मादक महक 
मेहंदी की
कर गयी थी बेसुध,
लहरा रही थी 
अलकें 
कन्धों पर 
या थी 
घटायें सावन की
झुकी हुई 
मधुशाला पर,
झुके झुके से थे
केश 
या थे 
कोई संदेशे
उतरे हुए 
देवलोक से,
अधरों पर थे
धीमे गीत 
या थी 
वो लीन 
उच्चार में
वेदमंत्रों के,
प्रतिच्छाया 
हर्ष की थी 
मुखमंडल पर 
या था 
कोई शशि 
बरसाता
चांदनी
अँधेरी निशा में, 
बोलों से 
बरस रहा था 
मधु 
या टपक रही थी
बूंदें ओंस की
टहनियों से,
मस्त नज़र उसकी
थी कटार भी 
और 
मरहम भी,
दे रही थी केशराशि 
भान 
भ्रमरों के गुंजन का, 
नेत्रों में थी 
चपलता 
और
कातरता 
हरिणी की, 
दे रहे थे नयन 
अनुभूति 
करतार के
'कुन' कहने की,
लग रहा था 
ज्यों
किशोरावस्था 
और 
यौवन का 
मिलनोत्सव 
हो रहा हो घटित 
एक ही प्याले में 
सुरा पीकर... 

हमारी नज़्म...

हमारी नज़्म 
# # # # # 
देख लो
इस ट्रे में
बस चाय की एक प्याली है,
यही तो कहा था तुम ने,
सुबह जब मैं सो रही हूँगी
तुम सिर्फ एक प्याली ले कर आना
घूँट घूँट पियेंगे 
हम दोनों...

तुम अब भी उनींदी हो,
बिखरे बिखरे बाल
बेतरतीब सी,
चेहरे पर नूर है 
अपने मुकम्मल होने के 
एहसास का,
जिसमें बिम्ब है 
अस्तित्व का ....

केतली से 
उड़ेल रही है तू 
भाप उठती 
गहरी चोकलेटी चाय,
जो चाय नहीं
आंसू है 
जो बहाए हैं
सारी रात हम ने,
लिपट कर एक दूजे से,
ये ही आब-ए-गंगा है
बह गए हैं 
जिसमें शुमार हो
हमारे सारे दर्द,
सारी खुशियाँ,
सारी वासनाएं..

जिया है हम ने 
जिस्मों से परे 
बीती रात के ख्वाब को,
करते हुए महसूस 
एक दूजे की रूह को,
युगों से अवरुद्ध 
बह गया है सबकुछ  
इन चार आँखों से...

ह़र पौर 
हमारे जिस्म का
बन गया है रूह,
खामोश है आज 
जुबान जिस्म की
करने लगी है 
इबादात 
रूहानी वुजूद की 
दोहराते हुए 
आयतें 
इख्तिलाज़ में,
रूह ने समझ ली है 
ह़र बात रूह की...

कहा था मैने या कि तू ने, 
आदम और हव्वा ने 
किया था जो, 
सजा दी थी 
खुदा ने 
उस के लिए,
काश वे 
रूहों के फलसफे को 
पहचानते
जिस्मानी इत्तिहाद से पहले,
पूजे जाते ,
गाये जाते 
खुदा बन कर,
मंसूर से पहले ही
गूंजा पाते 
अनलहक को,
दुनियां को आगे बढ़ाने को 
सब कुछ तो 
दे दिया था
पहले से ही 
परवरदीगार ने...

आज की इस यादगार
रात ने 
रच दिया है
क्षितिज से परे 
घर 
हमारे सपनों का 
जिसमें बसे हैं 
ना तुम
ना मैं
हम...हम,
लिए सब रंग
धनक के,
जो रोशन है 
एक नूर बन कर
अपने ही 
बिना रंग के रंग में...

ना इंकार है
ना इकरार,
है बस एक 
कुदरतन मंज़ूरी,
रूह की,
जिस्म की,
वुजूद की,
पाप की,
पुन्य की
और 
परे इन सब से
शून्य की...

आओ महसूस कर लें
एक दूजे को 
फिर एक बार
उसी तरह,
इसी लम्हें में ,
ना जाने
कल हो ना हो...

Monday, 11 August 2014

अर्हता : धम्मपद से --- (नायेदाजी)

अर्हता धम्मपद  से 

# # # # #
मन  मस्तिष्क हो
शांत
सत्य
सकारात्मक
शुद्ध .

वचन हो
सत्य
सकारात्मक 
शुद्ध .

क्रिया कलाप हो
सकारात्मक
शुद्ध .

वही है
मुक्त...........
वही है
संत.........
वही है
साधु-मानव.


(जीवन को वृक्ष के रूप में लेते हैं, चरित्र का तना, संबंधो की शाखाएँ,
कथन के पुष्प तथा क्रियाओं और परिणामों के फलों को लेकर विकसित  है यह वृक्ष जो शुद्ध  उद्देश्य  के बीज से उत्पन्न है. आत्मीय  अनुभूतियों, मधुर संबंधों, व मीनिंगफुल  एक्टिविटीस  के लिए सहयोगी होंगे पवित्र  विचार,वचन और क्रिया कलाप.)

Inspiring  Sutra from dhammpad :
Santam Tassa Manam Hoti, Santam Vaacha cha Kamma cha,
Sammaa danna Vimuttassa, Upasanassa Tadino.
--------------Gautam Budh.

पाप: धम्मपद से--(नायेदाजी)

पाप: धम्मपद  से 

# # # # 
पापी को
होता प्रतीत
सब कुछ 
अनुकूल एवं
अतिउत्तम ............
जब पर्यंत 
ना होता पाप
परिपक्व .

भरण होता
है पाप घट का
जब परिपूर्ण ;
दृष्टव्य होता
पापी को
अपना पाप
सम्पूर्ण .


(गौतम बुध के वचनों का सार  है: दूसरों को शारीरिक, मानसिक अथवा वैचारिक क्षति पहुँचना पाप है. पाप जब परिपक्व  होता है तब पाप कर्ता  अपने
पीड़ादाई  कर्मों को पूर्ण रूप से देखता है तथा अपने कर्मों के परिणाम और 
प्रभाव को अनुभव करता है.अपने कार्य -कलापों के प्रति"जागरूकता" हमें  अपनी ग़लतियों को समझाती  है और तत्क्षण अपने को सुधार कर हम उसके बुरे परिणामों को क्षीण कर सकते हैं :"सुख पहुँचाना  किसी को, खुद को सुखी बनाता  है, दुख
पहुँचाना  किसी को खुद को दुखी बनाता  है.........We are responsible for our own miseries.)

Inspiring Sootra from Dhammpad :
Paapopi passati bhadram, Yava paapam na pacchati,
Yaadatha pachati paapam, adha paapo paapani passati.
--------------------Gautam Budh.

मूर्ख:धम्मपद से---(नायेदाजी)

मूर्ख:धम्मपद से

# # # # 
जब हो
ज्ञान
निज ज्ञान का
और 
संज्ञान
निज अज्ञान का
तो होता है
पूर्ण ज्ञानी.

हो जिसे
ज्ञान
स्वज्ञान का,
किंतु ना हो
ज्ञान
स्व -अज्ञान का
होता है
वह 
अर्ध ज्ञानी.

जो हो
स्व -ज्ञान से
निज अज्ञान से
अनजान ,
होता है
वह 
मूर्ख
भोला.


(अनजाने  विषयों का इल्म बढ़ाते  रहना ही बेहतर शख्सियत बनाने का मन्त्र  है.
केवल मूर्ख ही यह समझते हैं कि  वह सब कुछ  जानते हैं, मगर बुद्धिमान  यह समझते हैं कि  अभी भी बहुत कुछ  जानना और सीखना शेष है. निरंतर अभ्यास
व  प्रशिक्षण द्वारा अज्ञान से ज्ञान की ओर  बढ़ना ही जाज्वल्यमान  व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया है....ऐसा एक  विद्वान टीकाकार का निर्वचन है.)


Inspiring Sootr from Dhammpad :
Yo Baalo Mannati Baalyam, Pandito Vaapi Tenaso,
Baalo Cha Pandita Maani, Save Baaloti Vucchati.
--------Gautam Budha.

जागरूकता:धम्मपद से -- (नायेदाजी)

जागरूकता:धम्मपद से 

# # # #
होना है
तुझे
जागरूक
असावधान
मानवों
में……………

रहना है
तुझे
सजग
सुप्त
मानवों
में...

त्वरित
अश्व 
रहे
अग्रणी
मंतर-गति
अश्वों से... 

जागृत
मेधावी
नर-नारी
होते है
अग्रगामी
जीवन में…


जागरूकता या अप्रमाद का मतलब है 'प्रेज़ेंट मोमेंट' की happening का पूरा पूरा इल्म (जानकारी) और उससे पहिले , उसके दरमियाँ और उसके बाद की 'activeness '.

Inspiring Sootr From Dhammpad :

Appamatto pamattesu;Suttesu bahu jaagaro,
Abalassamva seeghasso;Hitvaa yaatisumedhaso.
------------Gautam Budha

भिक्खु (साधु) : धम्मपद से--(नायेदाजी)

भिक्खु -साधु : धम्मपद  से

# # # #
लता त्यागती
शुष्क 
पुष्पों को,
रहित हो
आसक्ति एवं 
स्वामित्व 
भावों से.

त्यागो
तुम भी
कामनाओं,
घृणाओं 
अहंकार
आसक्ति और 
आकांक्षाओं के
भावों को,
हे भिक्खुओं  !



(भिक्खु , साधु या sage  होने का अर्थ यह नहीं है कि  हम संसार का परित्याग करें और वेश परिवर्तन करें. साधु-स्वभाव मनुष्य  अपने परिवेश, समूह, स्थिति , प्रकृति,संसार, सृष्टि तथा ब्रह्माण्ड  का अनिवार्य एवं पूरक अंश  होता है. उसके पास सब होने पर भी कुछ  नहीं होता और  कुछ  ना होने पर भी सब कुछ  होता है.)

Inspiring Sootr From Dhammpad :

Vassikaa Piya Puppani, Maddavaani Pamunchati,
Evam Raagancha Dosancha,Vippamucheda Bhikkavo !
-------Gautam Budha

भ्रमर और पुष्प : धम्मपद से---(नायेदाजी)

भ्रमर और  पुष्प : धम्मपद से--

(धम्मपद  गौतम बुद्ध की भावनाओं,विचारों एवं सिद्धांतो  का अनुपम संग्रह है. इन में से चुन कर कुछ  ज्ञान मणियों  को आप के साथ, समय समय पर शेयर करने का उपक्रम)
*******************************************************************
# # # #
ले लेता है
रस
सुगंध
एवं पराग,
मंडराता
गाता
प्रसन्न
भ्रमर
किए बिना कोई क्षति,
हंसते-गाते
खिले पुष्प को.

देखो मैत्री
उनकी................

अक्षत रहता है
पुष्प
प्रफुल्लित
विकसित
हरे  भरे
उद्यान में.
लिए वही
रंग 
सौरभ और 
सौंदर्य.

स्वयं : धम्मपद से--(नायेदाजी)

स्वयं : धम्मपद  से

# # # # 
जो स्वयं है
स्वामी
स्वयं का.

नहीं है कोई
अन्य
स्वामी
उसका.

परित्याग कर
अहंकार का
बनता है जो
श्रेष्ठ
स्वयं.

प्राप्य होती
उसको
आत्मविजय
स्वयं के ही
प्रयासों से.


(एक  बात तो स्पष्ट  है कि  'स्वयं' और  'अहंकार' दो अलग अलग तथ्य  है. व्यक्ति स्वयं ही अपना बेहतरीन दोस्त बन सकता है और  स्वयं ही अपना बद-तर दुश्मन.
अपनी खुशी और  गम  का भी ज़िम्मेदार इंसान खुद ही होता है, दूसरों को तो झूठा 
इल्ज़ाम दिया जाता है. सारा खेल हमारी मनोदशा का है. आत्मवाद>आत्मावलोकन>ज्ञान>मुक्ति (निर्वाण)........सब कुछ  स्वयं द्वारा...स्वयं को जागृत कर.
caution :'स्वयं को.' ना कि  'अहंकार' को. बुद्धं  शरणं गच्छामि ! )

Inspiring Sutr from Dhammpad :

Atta Hi Attano Natho, Kohi Natho Paro Siya,
Atta Na Hi Sudantena, Naatham Labhati Dullabham.
------------Gautam Budh

बुद्धिमान : धम्मपद से - (नायेदाजी)

बुद्धिमान : धम्मपद से 
# # # # #
बुद्धिमान  है वो,
जो कहता सदा
सत्य को,
दृष्ता बन करता इंगन
दोषों का*
गुण कोष को जान
करें आपदान
त्रुटियों का.*

(*पहले स्वयं के/की-- तदुपरांत औरों  के/की)


संगति बुद्धिमान  की
होती सहयोगी
सत्य को लखने में
दोष-रहित होने में
जीवन विजित करने में.


(धम्म्पद की चर्चा में, एक  विद्व-मनीषी का यह 'स्लोगन ' काफ़ी स्टीक है:"समुन्नत हो करो अपना सुधार, बनो औरों  की उन्नति में मददगार." उन्हे प्रणाम. सर्वप्रथम अपने दोषों की वास्तविक पहचान>अध्ययन और  अभ्यास द्वारा अपना सुधार>अन्यों को भूल-सुधार करने एवं दोष-रहित होने की प्रक्रिया में सहयोग.)

Inspiring Sutra from Dhammpad :

Nidheenam va Pavattaram,Yam Passe Vajj Dassinam,Niggayha Vaadim Medhavam,
Tadisam Panditam Bhaje,Tadisam Bhaja Maanassa, Seyyo Hoti Na Paapiyo.
---------Gautam Budha